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Bangladeshi Ghuspaith: कोर्ट ने बांग्लादेशी घुसपैठ पर नोटिस

Bangladeshi Ghuspaith
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सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड में Bangladeshi Ghuspaith से जुड़े मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस ए. अमानुल्ला की बेंच ने इस मामले में केंद्र सरकार से पक्ष रखने को कहा है, और सुनवाई की अगली तारीख 3 दिसंबर निर्धारित की है। झारखंड सरकार ने बांग्लादेशी घुसपैठ की जांच के आदेश पर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के कुछ जिलों में कथित घुसपैठ की जांच के लिए केंद्र और राज्य सरकार की एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी बनाने का आदेश दिया था।

Bangladeshi Ghuspaith: हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए झारखंड सरकार का पक्ष

Bangladeshi Ghuspaith के मुद्दे पर झारखंड हाईकोर्ट का आदेश 20 सितंबर को आया, जिसमें हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य के संयुक्त सहयोग से एक फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी बनाने का निर्देश दिया। यह आदेश एक जनहित याचिका के जवाब में आया था, जिसे जमशेदपुर निवासी दानियल दानिश ने दायर किया था। याचिका में झारखंड के गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, दुमका, साहिबगंज, और देवघर जैसे जिलों में बड़े पैमाने पर घुसपैठ और अवैध प्रवास का आरोप लगाया गया था।

झारखंड सरकार ने हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सरकार का पक्ष रखा। सिब्बल ने कोर्ट के सामने तर्क रखा कि झारखंड की स्थिति सीमावर्ती राज्य की नहीं है, और इसलिए यहां बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या पर इस प्रकार की कार्रवाई अनुचित है। उन्होंने कहा कि यह आदेश राज्य के विधानसभा चुनावों में राजनीतिक बयानबाजी का मुद्दा बन गया है और चुनावी माहौल में तनाव का कारण बन रहा है। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि इस मामले में तुरंत हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई जाए, ताकि राज्य में सरकार की स्वायत्तता और अधिकार सुरक्षित रह सके।

Bangladeshi Ghuspaith: केंद्र की प्रतिक्रिया और संथाल परगना में जनसांख्यिकी बदलाव की दलील

हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया में बताया कि झारखंड के कई जिलों, खासकर संथाल परगना क्षेत्र में जनसांख्यिकी असंतुलन देखा गया है, जिसका संभावित कारण Bangladeshi Ghuspaith हो सकता है। केंद्र ने यह भी दावा किया कि यहां के कई आदिवासी बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम समुदाय के लोगों को बड़े पैमाने पर गिफ्ट डीड के माध्यम से जमीनें हस्तांतरित की जा रही हैं। यह जनसंख्या संतुलन को बदलने का संकेत हो सकता है, और घुसपैठ का एक संभावित असर माना जा रहा है।

केंद्र सरकार के इस बयान के बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले से जुड़े तथ्यों की जाँच की आवश्यकता है। कोर्ट ने इस संदर्भ में केंद्र और राज्य सरकारों को एक संयुक्त फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी बनाने का निर्देश दिया। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से दो अधिकारियों के नाम सुझाने को कहा था, ताकि इस समिति का गठन किया जा सके।

Bangladeshi Ghuspaith: झारखंड सरकार का तर्क – राज्य की स्वायत्तता में हस्तक्षेप

Bangladeshi Ghuspaith मामले में झारखंड सरकार की ओर से दिए गए तर्कों में कहा गया कि यह राज्य के प्रशासनिक और स्वायत्त अधिकारों में सीधा हस्तक्षेप है। झारखंड सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठ के मामले को राज्य सरकार के नियंत्रण में रहकर हल किया जा सकता है और इसके लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों की मदद की आवश्यकता नहीं है। सिब्बल ने इस मुद्दे पर तर्क रखा कि राज्य सरकार के पास अपनी सुरक्षा और प्रशासनिक मुद्दों को संभालने के पर्याप्त अधिकार हैं।

सिब्बल का यह भी कहना था कि केंद्र द्वारा झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ का जो दावा किया जा रहा है, वह पूरी तरह से आंकड़ों पर आधारित नहीं है। राज्य सरकार के अनुसार, हाईकोर्ट का फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी का आदेश बिना ठोस आंकड़ों के एकतरफा है और राज्य सरकार के स्वायत्तता और शक्ति में अनावश्यक हस्तक्षेप के समान है। सिब्बल ने यह भी जोड़ा कि हाईकोर्ट का आदेश झारखंड के चुनावी मुद्दों को प्रभावित कर सकता है और इससे राज्य में चुनाव के दौरान अव्यवस्था पैदा हो सकती है।

Bangladeshi Ghuspaith: सुप्रीम कोर्ट का निर्देश और सुनवाई की अगली तारीख

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई के बाद जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस ए. अमानुल्ला की बेंच ने केंद्र को नोटिस जारी किया और सुनवाई की अगली तारीख 3 दिसंबर को निर्धारित की। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर दो हफ्ते की रोक भी लगा दी है, ताकि इस मामले में विस्तृत जांच और विचार-विमर्श किया जा सके। इस निर्देश से फिलहाल झारखंड सरकार को राहत मिली है, क्योंकि इससे उन्हें अपनी स्वायत्तता की रक्षा के लिए और अधिक समय मिलेगा।

Bangladeshi Ghuspaith: हाईकोर्ट के आदेश के पीछे पृष्ठभूमि और जनहित याचिका का उद्देश्य

Bangladeshi Ghuspaith के मुद्दे पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका जमशेदपुर के निवासी दानियल दानिश ने दायर की थी। दानिश ने अपनी याचिका में दावा किया था कि झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र के गोड्डा, जामताड़ा, पाकुड़, दुमका, साहिबगंज और देवघर जिले में बड़े पैमाने पर अवैध प्रवास और घुसपैठ हो रही है, जिससे यहां की आबादी का संतुलन बिगड़ रहा है।

याचिका में आरोप लगाया गया था कि बाहरी लोगों को यहां पर संपत्तियों का हस्तांतरण किया जा रहा है, जिससे जनसांख्यिकी पर असर पड़ सकता है। इसी याचिका के आधार पर हाईकोर्ट ने फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी के गठन का आदेश दिया था और मामले की गहराई से जांच की आवश्यकता बताई थी।

Bangladeshi Ghuspaith: केंद्र और राज्य सरकार के बीच खींचतान का मुद्दा

Bangladeshi Ghuspaith से जुड़े इस मामले में केंद्र और राज्य सरकार के बीच अधिकारों की खींचतान एक अहम मुद्दा बन गई है। केंद्र सरकार का तर्क है कि राज्य में जनसांख्यिकी बदलाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जबकि राज्य सरकार का मानना है कि उनके पास इस समस्या को हल करने के पर्याप्त अधिकार हैं।

इस मामले में झारखंड सरकार ने कहा कि अवैध प्रवास के मुद्दे पर राज्य सरकार की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करना संवैधानिक नहीं है। सिब्बल ने कहा कि राज्य सरकार ने अपनी सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाए हैं और Bangladeshi Ghuspaith जैसे मामलों को संभालने के लिए राज्य में पर्याप्त कानून व्यवस्था मौजूद है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के आदेश और हाईकोर्ट के निर्देशों के मद्देनजर Bangladeshi Ghuspaith का मामला अब एक गंभीर कानूनी और राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। झारखंड सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगवाने के लिए पूरी कोशिश की, जो फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में सफल होती दिखाई दी। इस मामले पर 3 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में फिर से सुनवाई होगी, जिसमें यह देखा जाएगा कि Bangladeshi Ghuspaith से निपटने के लिए केंद्र और राज्य के बीच संतुलन कैसे कायम किया जा सकता है।

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