झारखंड की राजनीति में एक बड़ा मोड़ तब आया जब “Simon Malto” ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से इस्तीफा देकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का दामन थाम लिया। बरहेट विधानसभा क्षेत्र से 2019 के चुनाव में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चुनौती देने वाले Simon Malto का यह कदम राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है। Simon Malto ने भाजपा पर पहाड़िया जनजाति की अनदेखी का आरोप लगाया और इसी कारण से पार्टी छोड़ने का फैसला किया।
Simon Malto ने भाजपा से इस्तीफा क्यों दिया?
Simon Malto ने भाजपा से इस्तीफा देने के बाद स्पष्ट किया कि उनकी नाराजगी भाजपा के पहाड़िया जनजाति की उपेक्षा से थी। Simon Malto का कहना है कि पहाड़िया जनजाति, जो आदिम जनजातियों में से एक है, भाजपा का परंपरागत समर्थन करती आई है। उन्होंने कहा कि पार्टी ने पहाड़िया समुदाय से किसी को भी उम्मीदवार नहीं बनाया, जिससे समुदाय अपमानित महसूस कर रहा था। यही कारण है कि Simon Malto ने भाजपा से इस्तीफा दिया और JMM का दामन थामा।
Simon Malto के समर्थकों के साथ JMM में शामिल होने की प्रक्रिया
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की उपस्थिति में बुधवार को Simon Malto ने अपने दर्जनभर समर्थकों के साथ JMM की सदस्यता ग्रहण की। रांची के कांके रोड स्थित मुख्यमंत्री आवासीय परिसर में आयोजित एक समारोह में Simon Malto और उनके समर्थकों का JMM में स्वागत किया गया। हेमंत सोरेन ने अपने सोशल मीडिया पर भी इस घटना को साझा करते हुए कहा कि बरहेट के Simon Malto का JMM परिवार में स्वागत है।
Simon Malto का चुनावी इतिहास और बरहेट विधानसभा में उनका योगदान
बरहेट विधानसभा क्षेत्र से Simon Malto ने 2019 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन के खिलाफ भाजपा के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में हेमंत सोरेन ने Simon Malto को 25,740 मतों के अंतर से हराया था। हेमंत सोरेन को कुल 73,725 वोट मिले थे, जबकि Simon Malto को 47,985 वोट प्राप्त हुए थे। इसके बावजूद, बरहेट क्षेत्र में Simon Malto की पकड़ बनी रही और वे पहाड़िया समुदाय के प्रभावशाली नेता माने जाते हैं।
Simon Malto का भाजपा छोड़ने का निर्णय: JMM की राजनीति में क्या बदलाव?
Simon Malto के JMM में शामिल होने से झारखंड की राजनीति में भाजपा को झटका लगा है। Simon Malto का इस तरह से JMM में जाना, पहाड़िया समुदाय की भावनाओं को लेकर पार्टी की अनदेखी पर सवाल उठाता है। Simon Malto का यह कदम भाजपा के लिए एक गंभीर संकेत है कि पार्टी को झारखंड में अपनी रणनीति और जातिगत समीकरणों को लेकर सोचने की जरूरत है।
Simon Malto के JMM में शामिल होने के कारण पहाड़िया जनजाति की उपेक्षा
Simon Malto का कहना है कि पहाड़िया जनजाति भाजपा के परंपरागत वोटर रहे हैं, और पार्टी ने इस जनजाति का समर्थन हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान किया है। फिर भी, Simon Malto का आरोप है कि भाजपा ने इस जनजाति के उम्मीदवारों को नजरअंदाज किया है। Simon Malto ने बाबूलाल मरांडी को भेजे अपने इस्तीफे में कहा कि पहाड़िया जनजाति का अपमान हुआ है और पार्टी ने समुदाय के किसी व्यक्ति को चुनावी मैदान में नहीं उतारा।
Simon Malto का JMM में जाने का असर: भाजपा और JMM के लिए नए समीकरण
Simon Malto का JMM में शामिल होना आगामी चुनावों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। JMM को पहाड़िया जनजाति का समर्थन मिल सकता है, जिससे इस समुदाय का भाजपा से मोहभंग हो सकता है। हेमंत सोरेन की पार्टी को Simon Malto जैसे पहाड़िया जनजाति के नेता का साथ मिलना आगामी विधानसभा चुनाव में JMM के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
दुमका से लुईस मरांडी का भी JMM में शामिल होना
Simon Malto की तरह, भाजपा की दुमका सीट से प्रत्याशी रहीं लुईस मरांडी ने भी भाजपा छोड़ JMM में शामिल होने का निर्णय लिया। वह इस बार जामा विधानसभा सीट से JMM के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। लुईस मरांडी और Simon Malto का JMM में जाना भाजपा के लिए झारखंड में नए चुनावी समीकरण का कारण बन सकता है।
Simon Malto के JMM में शामिल होने से भाजपा की रणनीति में क्या बदलाव आएगा?
“Simon Malto” का JMM में शामिल होना भाजपा के लिए एक चुनौती बन गया है। भाजपा ने Simon Malto की जगह पर गमालियल हेंब्रम को बरहेट सीट से मैदान में उतारा है, जो एक स्वयंसेवक के रूप में संघ से जुड़े रहे हैं। भाजपा के लिए यह देखना जरूरी है कि Simon Malto के जमीनी समर्थन को कैसे संभाला जाए, जो अब JMM में जाने से JMM के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है।
निष्कर्ष: Simon Malto के JMM में जाने का झारखंड की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
Simon Malto के JMM में शामिल होने से पहाड़िया समुदाय का समर्थन JMM को मिलने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। भाजपा को झारखंड में पहाड़िया जनजाति की मांगों पर ध्यान देना होगा ताकि भविष्य में उन्हें इस समुदाय का समर्थन मिलता रहे। Simon Malto का यह फैसला भाजपा के लिए संकेत है कि जनजातीय समुदायों की अनदेखी पार्टी के लिए झारखंड में घाटे का सौदा बन सकती है।
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