सबसे पुरानी सब्जी मंडी,सस्ती-टिकाऊ सब्जी की पहली पसंद
सूखे जिलों की सबसे पुरानी मंडियों में झरिया सब्जी मंडी भी शामिल है, आज भी जिले की थोक सब्जी और फल आपूर्ति की आपूर्ति की मंज़िल है। वर्ष 1985 में स्थापित यह मंडी विशेष रूप से सब्जी मंडी के रूप में प्रसिद्ध है, जहां हर दिन ताजी सब्जियां और फल देशों की अलग-अलग पहचान होती हैं। सुबह 4 बजे से रात 8 बजे तक मंडी में थोक विक्रेताओं की लंबी-लंबी क़तारें लगाई जाती हैं, जिससे इसकी प्रभावशीलता का आकलन किया जा सकता है।
इस बाजार की खासियत यह है कि यहां पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड के अलग-अलग इलाकों से ताजी सब्जियां सुबह-सुबह पहुंचती हैं। झरिया की इस मंडियों से चंदनक्यारी, बोकारो, रायगंज, तोपचांची, सिंदरी समेत आसपास के कई जिलों के व्यापारी अपनी-अपनी औद्योगिक दुकानों और बाजारों में दुकानें बनाते हैं।
ओरिएंटल में बंगाल की दुकान की धूम
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद क्षेत्र से पाताल करेला, परवल, बंदा, गोवा और फूलगोभी की अच्छी आवक है। वहीं रांची की चीनी मटर, बिहार का नया आलू और छत्तीसगढ़ का बैंगन भी इन दिनों थोक विक्रेताओं की पहली पसंद बने हुए हैं। ताजगी और कम कीमत के कारण व्यापारी भारी मात्रा में खरीदारी कर रहे हैं
आज के मंडी भाव की बात करें तो थोक बाजार
बंगाली की कीमत: ₹40 प्रति किलो बैंगन: ₹40 प्रति किलो बैंगन ₹25 प्रति किलो सेम ₹8 से ₹10 प्रति किलो फूलगोभी ₹8 से ₹10 प्रति किलो फूलगोभी (बंगाल से बिका हुआ): ₹10 प्रति किलों की कीमत को सस्ता और महंगा माना जाता है क्योंकि यहां से बनी सब्जियां लंबे समय तक खराब नहीं होती हैं, जिससे बिजनेस बिजनेस को नुकसान होता है।
फल मंडी भी खास है
फल मंडियों में भी देश के विभिन्न राज्यों से फल खोज रहे हैं। व्यापारी राजेश कुमार के सेब कश्मीर से आते हैं, कीमत के अनुसार ₹650 प्रति पेटी पेटी माल्टा पंजाब से, कीमत के अनुसार ₹900 प्रति पेटी पेटी तरबूज़ महाराष्ट्र से, कीमत ₹700 प्रति पेटी पेटी तरबूज़ महाराष्ट्र से, कीमत ₹500 प्रति पेटी यहां सभी फल और सब्जियाँ थोक में पेटी या सुपरमार्केट से बेची जाती हैं, जो बाद में अपनी दुकानों में किलों के भाव से बेचती हैं।
मंडी में शौचालय नहीं है
एक ओर जहां झरिया मंडी व्यापार की कमी बेहद गंभीर है, वहीं दूसरी ओर यहां एक ओर झरिया मंडी व्यापार की भारी कमी है। व्यापारी महफूज ने बताया कि वे पिछले 10 वर्षों से झरिया मंडी में व्यापार कर रहे हैं, लेकिन आज तक यहां ना तो अधूरा है और ना ही पीने के पानी की सुविधा है। शौचालय के लिए जंगल लगभग 2 किलोमीटर दूर है, जिससे भारी परेशानी होती है।
आदिवासियों का कहना है कि दूर-दराज से हजारों की संख्या में लोग यहां खरीदारी के लिए आते हैं और कई राज्यों से माल खरीदना चाहते हैं, इसके बावजूद खूबसूरती का न होना प्रशासन की अनदेखी है।
टॉयलेट, पानी और अन्य सॉसेज़ मशीनरी भी उपलब्ध कराई गई। इससे न केवल आदिवासियों को राहत मिलती है, बल्कि झरिया मंडी का संचालन और भी अधिक हो जाता है।
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