हिमालय के भगवान में बसा पराशर मंदिर, तैरती झील, रहस्य और देवदार के महात्म्य से भरा है ये दिव्य स्थल, कैसे?

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पराशर झील हिमाचल: हिमाचल की चोटियों पर कुछ जगहें ऐसी हैं, जहां कदम रखते ही मन को अलग शांति मिलती है। हर ओर प्राचीन काल का आना-जाना, अचानक बारिश, तेज हवा और पल-पल बदलते आकाश में समुद्र तट पर खड़ा पराशर मंदिर एक अद्भुत अनुभव देता है। यह मंदिर मंडी से दूरवर्ती पाइपलाइन पर स्थित है, जहां स्थापना से पता चलता है कि प्रकृति ने हर रंग की पेशकश उकेरे की है। पहाड़ों के घाटों से उठती जंगली हवा, झील के पास का सार्वभौम भरा समुद्र और मंदिर की लकड़ी से बना पवित्र स्वरूप मन को गहराई से छूता है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यह सिर्फ एक देवदार के पेड़ से बनाया गया है। किवदंती के निर्माण में एक बालक ने और लकड़ी पर मकड़ी के जाले जैसी रेखाएं उभरती चली गईं। एंटरप्राइज़ प्लांट को कला की तरह उकेरकर पूरा ढांचा तैयार हुआ। हिमाचली क्षेत्र में लकड़ी के मंदिर देखे जाते हैं, मगर इस मंदिर की बनावट और शैली बिल्कुल अलग है।

पूर्वी एशिया में यहां कदम रखना आसान नहीं होता। आसपास की पहाड़ियाँ बर्फ में समायी हुई हैं। कई बार तो मंदिरों की छतें और सीढ़ियाँ भी बर्फ से भर जाती हैं। फिर भी लोग दूर-दूर से आते हैं, क्योंकि यहाँ पहुँच पर मन को जो परमानंद है, वह हर मौसम को न्योछावर कर देता है। शांत वातावरण, तैरती झीलऔर ऋषि पराशर का इतिहास त्रिमूर्ति इस जगह को बेहद अनोखा झटका देता है।

पैगोड़ा शैली की अद्भुत रचना
मंडी शहर से लगभग 45-48 किलोमीटर की दूरी पर यह टेम्पल पैगोडा आउटसोर्सिव बना हुआ है। तीन मंज़िल वाला यह प्रारूप देखने में अत्यंत आकर्षक लगता है। लकड़ी से निर्मित, कलात्मक इमारतें और छतें, हिमालयी वास्तुशिल्प की अनोखी मिसालें हैं। माना जाता है कि यह पूरा ढांचा सिर्फ एक देवदार के विशाल तने से तैयार हुआ था। पूरे 12 दिनों तक चली ये बात आज भी लोगों को हैरान कर रही है.

पराशर झील और तैरता झील
मंदिर के ठीक पास पराशर झील स्थित है, जिसके बीच में एक तैराक मौजूद है। यह एक ओर जाता है, कभी दूसरी ओर। स्थानीय लोग इसे देव शक्ति से कहते हैं। झील की गहराई आज तक पता नहीं चली पाई, जो इसे और रहस्यमयी संरचना है।

मौसम का बदलता मिजाज़
इस जगह पर इतने सारे मसाले हैं कि सीज़न का भरोसा नहीं किया जा सकता है। अचानक बादल घिर आते हैं, बारिश शुरू हो जाती है और कुछ ही मिनटों में बादल सब कुछ दिखाई देता है। यही बदलाव इसे और खूबसूरत रचनाएँ हैं। गर्मियों में यहाँ नारियल सबसे आसान होते हैं, समुद्र तट पर बर्फ से भरे रास्ते होते हैं, फिर भी पैदल चलने वाले पैदल यात्री मंदिर की मूर्तियां होती हैं।

महर्षि पाराशर का ज्ञान और कथा
पराशर ऋषि को ज्योतिष, धर्म, आयुर्वेद, वास्तु और कई अन्य विषयों में दिव्य ज्ञान के लिए जाना जाता है। उनके ग्रंथ आज भी अस्तित्व में आते हैं। एक कथा है कि ऋषि पराशर ध्यान के लिए उपयुक्त स्थान की खोज कर रहे थे। जहाँ भी जाओ, वहाँ पानी निकल आता था। अंत में यहां बताया गया कि जब उन्होंने ध्यान दिया तो इस स्थान पर झील बनी, जिसे आज पराशर झील कहा जाता है।

स्थापित मूर्तियां
मंदिर के गर्भगृह में ऋषि पराशर के पत्थर की मूर्ति स्थापित है। साथ ही विष्णु, शिव और महिषमर्दिनी देवी की प्रतिमाएँ भी विद्यमान हैं। लकड़ी और पत्थर का मेल यह स्थान एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव देता है।

मेले और लोक संस्कृति

झील के पास हर साल दो बड़े मेले आते हैं। होली के समय और भाद्रपद मास की पंचमी को यहां भारी भीड़ उमड़ती है। ढोल-नगाड़े, गंगा और भंडारे इस जगह को उत्सव में बदल देते हैं।

कैसे?
-हवाई मार्ग: हवाई अड्डे के सबसे पास का हवाई अड्डा-मनाली (लगभग 52 किमी)।
-रेलमार्ग: वसुन्धरा रेलवे स्टेशन या चंडीगढ़।
-सड़क मार्ग: मंडी से बस और सड़क की सुविधा आसानी से मिल जाती है। मंदिर से सौ मीटर नीचे भी मौजूद है।

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