jmm members: झारखंड की सियासत में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का एक मजबूत स्थान रहा है। इस पार्टी ने राज्य के कई बड़े नेताओं को राजनीति की पिच पर उतारा और उन्हें सफलता के शिखर तक पहुंचाया। लेकिन, झामुमो से अलग होकर सियासी करियर बनाने का सपना देखने वाले कई कद्दावर नेता हिट विकेट हो गए। ये नेता, जिन्होंने कभी झामुमो के बैनर तले चुनावी सफलता का स्वाद चखा था, अलग होते ही सियासी पिच पर फिसल गए और अब संघर्ष करते नजर आते हैं।
कुणाल षाड़ंगी: झामुमो से अलग होकर संघर्षरत
jmm members: कुणाल षाड़ंगी ने झामुमो के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। 2014 में उन्होंने झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की और भाजपा के दिग्गज नेता दिनेशानंद गोस्वामी को मात दी थी। लेकिन 2019 में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली। अब वे झामुमो में वापस आने की कोशिश में हैं, लेकिन अब तक उन्हें कोई मजबूत जमीन नहीं मिल पाई है।
jmm members: अर्जुन मुंडा और विद्युत चरण महतो: अपवाद जो सफल हुए
झामुमो से किनारा करने के बाद सिर्फ अर्जुन मुंडा और जमशेदपुर के सांसद विद्युत चरण महतो ही अपनी सियासी पिच पर टिक पाए। अर्जुन मुंडा ने अपने राजनीतिक करियर में मुख्यमंत्री पद तक की जिम्मेदारी संभाली और केंद्रीय मंत्री के पद पर भी कार्य किया। वहीं, विद्युत चरण महतो ने भी झामुमो छोड़कर भाजपा का दामन थामा और 2014 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर सांसद बने।
कृष्णा मार्डी: सियासी सफर में असफलता का सामना
jmm members: कृष्णा मार्डी झामुमो के कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे। 1985 और 1990 में वे दो बार विधायक बने और 1991 में सांसद भी बने। 1992 में उन्होंने झामुमो से किनारा कर अपना अलग दल ‘झामुमो (मार्डी)’ बनाया, जिसमें नौ विधायक भी उनके साथ थे। लेकिन उन्हें इस कदम का कोई फायदा नहीं मिला। बाद में उन्होंने भाजपा, आजसू और कांग्रेस जैसे दलों का दामन थामा, लेकिन कहीं भी वे सफल नहीं हो पाए।
चंपाई सोरेन: झामुमो छोड़ नया दल बनाने की घोषणा
jmm members: हाल ही में चंपाई सोरेन ने झामुमो से अलग होकर नया दल बनाने की घोषणा की है। हालांकि, अभी तक उन्होंने झामुमो से इस्तीफा नहीं दिया है और न ही मंत्री पद से इस्तीफा दिया है। उनके इस कदम से राजनीतिक गलियारों में चर्चा हो रही है कि झामुमो से किनारा करने वाले नेताओं का सियासी करियर खत्म हो गया है। चंपाई सोरेन ने हालांकि, नया दल बनाने का इरादा जाहिर किया है, लेकिन अभी देखना बाकी है कि वे इस सियासी पिच पर कैसे सफल होते हैं।
jmm members: सीता सोरेन: झामुमो छोड़ने के बाद मिली हार
सीता सोरेन, जो झामुमो के टिकट पर जामा विधानसभा से तीन बार विधायक रह चुकी हैं, उन्होंने 2019 में झामुमो छोड़कर भाजपा का दामन थामा। लेकिन झामुमो छोड़ने का उनका फैसला सही नहीं रहा और उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने दुमका से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत हासिल नहीं कर सकीं। अब उनका राजनीतिक करियर दांव पर है।
सूरज मंडल: सियासी सफर में असफलता के बाद संघर्षरत
jmm members: सूरज मंडल, जो 1980 से 1991 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे और 1991 में सांसद बने, उन्हें झामुमो से निकालने के बाद सियासी पिच पर असफलता का सामना करना पड़ा। अब वे राजनीतिक सफलता के लिए काफी संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उन्हें कहीं भी सफलता मिलती नजर नहीं आ रही है।
jmm members: दुलाल भुईयां: सियासी पिच पर सेट नहीं हो पाए
झामुमो के कद्दावर नेता दुलाल भुईयां ने 1995, 2000 और 2005 में जुगसलाई से झामुमो के टिकट पर विधायक बनने के बाद 2009 के चुनाव में आजसू के रामचंद्र सहिस से हार का सामना किया। इसके बाद वे झाविमो और फिर भाजपा में शामिल हुए, लेकिन कहीं भी उन्हें सफलता नहीं मिली। अब वे सक्रिय राजनीति से दूर हो गए हैं।
निष्कर्ष: झामुमो से किनारा करने का मतलब राजनीतिक भविष्य पर संकट
jmm members: झामुमो से अलग होकर राजनीति की पिच पर उतरने वाले कई नेताओं का सियासी करियर संघर्ष में फंस गया है। झामुमो के बैनर तले राजनीति की शुरुआत करने वाले इन नेताओं को पार्टी छोड़ने के बाद सफलता नहीं मिल पाई है। सियासी पिच पर उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और वे अब अपनी पुरानी स्थिति पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। झामुमो के दामन से अलग होने का मतलब है कि राजनीतिक भविष्य पर संकट खड़ा हो सकता है, और यह बात झारखंड की राजनीति में बार-बार साबित हो चुकी है।
यह भी पढ़े
Pingback: Rims Ranchi Doctor: डॉक्टर और गार्डों के बीच हिंसक झड़प