chandipura virus: चांदीपुरा वायरस, जो विशेष रूप से भारत में पाया जाता है, अब बच्चों पर कहर बनकर टूट रहा है। हाल ही में गुजरात में इस वायरस से 6 बच्चों की मौत हो चुकी है, जिससे पूरे देश में हड़कंप मच गया है। यह वायरस भारत में करीब 60 वर्षों से सक्रिय है और विभिन्न राज्यों में महामारी फैला चुका है।
चांदीपुरा वायरस का उद्भव और नामकरण
जाने-माने वायरोलॉजिस्ट डॉ. सुनीत के सिंह के अनुसार, चांदीपुरा वायरस का सबसे पहला प्रकोप 1964-65 में महाराष्ट्र के नागपुर स्थित चांदीपुरा गांव में हुआ था। इसी गांव के नाम पर इस वायरस का नाम चांदीपुरा वायरस रखा गया। यह वायरस दुनिया में और कहीं नहीं पाया गया है।
chandipura virus: चांदीपुरा वायरस के मामले और मृत्यु दर
चांदीपुरा वायरस के मामले पिछले 60 वर्षों में छिटपुट रूप से आते रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्तमान सीजन में इस वायरस से 6 बच्चों की मौत हो चुकी है। वायरस की मृत्युदर बहुत अधिक है और यह बच्चों को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
चांदीपुरा वायरस का विस्तार
chandipura virus: यह वायरस विशेष रूप से भारत में ही पाया जाता है। सबसे पहले यह महाराष्ट्र के नागपुर के चांदीपुरा गांव में फैला और उसके बाद आंध्र प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में भी इसके मामले सामने आए हैं।
chandipura virus: वायरस की चपेट में कौन आते हैं?
चांदीपुरा वायरस विशेष रूप से 15 वर्ष या उससे छोटे बच्चों को प्रभावित करता है। यह वायरस उनके मस्तिष्क पर गंभीर प्रभाव डालता है, जिससे वे कोमा में जा सकते हैं और उनकी मृत्यु हो सकती है।
चांदीपुरा वायरस के लक्षण
chandipura virus: चांदीपुरा वायरस के लक्षण फ्लू या जापानी इंसेफेलाइटिस जैसे होते हैं। इससे संक्रमित होने पर गर्दन में ऐंठन, तेज बुखार, उल्टी आदि होती है। एडवांस स्टेज में मरीज कोमा में चला जाता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
chandipura virus: ब्रेन पर असर डालने वाला वायरस
चांदीपुरा वायरस मस्तिष्क के माइक्रोफेजेज का इंप्रेशन बढ़ा देता है, जिससे ब्रेन में इंफ्लेमेशन होता है। इस कारण मरीज कोमा में चला जाता है और उसकी स्थिति गंभीर हो जाती है।
वायरस की फैमिली और संक्रमण का तरीका
chandipura virus: चांदीपुरा वायरस RHAPDOVIRIDAE फैमिली से जुड़ा है, जिसमें रेबीज वायरस भी शामिल है। यह वैक्टर बॉर्न डिजीज है, जो मुख्य रूप से 3 मिमी लंबी सुनहरे और भूरे रंग की छोटी वयस्क मक्खी से फैलता है। यह मक्खी जब किसी बच्चे को काट लेती है और उसके सलाइवा से वायरस ब्लड में पहुंच जाता है, तो बच्चा संक्रमित हो जाता है। कुछ मामलों में यह मच्छरों से भी फैलता है, जिसमें एडीज और क्यूलेक्स प्रजातियों के मच्छर शामिल हैं।
chandipura virus: चांदीपुरा वायरस का इलाज
इस वायरस का कोई विशेष इलाज नहीं है। डॉक्टर सिम्पटोमैटिक इलाज करते हैं, जो लक्षणों के आधार पर दवा देते हैं। वायरस की कोई वैक्सीन नहीं है और न ही बहुत ज्यादा दवाएं हैं। कुछ एंटीवायरल ड्रग्स हैं जो डॉक्टर मरीजों को ठीक करने के लिए देते हैं।
वायरस का फैलाव और संभावनाएं
chandipura virus: चांदीपुरा वायरस का फैलाव बढ़ रहा है और इसके वाहक जहां-जहां जाते हैं, वहां यह वायरस भी फैल सकता है। जैसे पहले डेंगू सिर्फ साउथ एशिया में ही रिपोर्ट होता था, लेकिन अब अमेरिका में भी इसके केस मिल रहे हैं। ठीक इसी तरह चांदीपुरा वायरस भी फैल सकता है।
chandipura virus: जलवायु और वायरस का संबंध
यह मक्खी-मच्छरों से फैलता है, इसलिए जिस मौसम में मक्खी-मच्छरों का प्रकोप रहता है, उस समय यह वायरस अपना असर दिखा सकता है। बरसात और गर्मी के मौसम में मक्खियों और मच्छरों का प्रकोप अधिक होता है, जिससे यह वायरस तेजी से फैल सकता है।
विशेषज्ञों की राय
chandipura virus: डॉ. सुनीत के सिंह का कहना है कि चांदीपुरा वायरस बेहद खतरनाक है और इसे नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है। बच्चों को इस वायरस से बचाने के लिए उन्हें मच्छरदानी में सोने, मक्खियों और मच्छरों से बचाव के उपाय अपनाने की सलाह दी जाती है।
chandipura virus: भविष्य की चुनौतियां और उपाय
chandipura virus: चांदीपुरा वायरस के फैलाव को रोकने के लिए सरकार और स्वास्थ्य विभाग को मिलकर काम करना होगा। वायरस के वाहकों को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी उपाय करने होंगे। इसके साथ ही, वायरस के प्रति जागरूकता फैलाने और बच्चों की सुरक्षा के लिए विशेष कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है।
चांदीपुरा वायरस का बढ़ता खतरा सभी के लिए चिंता का विषय है। हमें मिलकर इसके खिलाफ लड़ना होगा और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। जागरूकता, सही जानकारी और समय पर इलाज ही इस वायरस से बचने का उपाय है।
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