हेमंत सरकार ने राज्य में युवाओं की राय ली, नई नियोजन नीति कैसी होनी चाहिए

नियोजन नीति
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झारखंड की नई नियोजन नीति कैसी होनी चाहिए, इसके लिए हेमंत सरकार ने राज्य में युवाओं की राय ली। इसमें 73 प्रतिशत युवाओं ने 2016 के पहले की नियोजन नीति के आधार पर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का सुझाव सरकार को दिया है। इसके बाद हेमंत सरकार ने राज्य के युवाओं को संदेश दिया है कि 2016 की पूर्व वाली नियोजन नीति के आधार पर तुरंत नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि रघुवर दास की सरकार द्वारा राज्य के 24 जिलों को अनुसूचित और गैर अनुसूचित जिलों में बांट कर बनाई गई नीति भी लागू नहीं की जा सकती, क्योंकि इसे भी हाईकोर्ट रद्द कर चुका है।

2016 के आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू

झारखंड में नई नियोजन नीति पर युवाओं की राय लेने के लिए भारत सरकार की मिनी रत्न कंपनी को जिम्मेदारी दी गई। सर्वेक्षण में 7,33,921 युवाओं की राय ली गई। युवाओं से यह जानने की कोशिश की गयी कि तात्कालिक तौर क्या पूर्व की नियोजन नीति (2016 के पहले वाली) के आधार पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। 73 फीसदी युवाओं ने 2016 से पहले वाली नियोजन नीति के आधार पर नियुक्ति शुरू करने का सुझाव दिया। 16 फीसदी युवाओं ने ना कहा और 11 फीसदी बोले- कुछ कह नहीं सकते।

झारखंड से मैट्रिक या इंटर की परीक्षा पास करने की अनिवार्य शर्त नहीं है

2016 से पहले की नियोजन नीति में अभ्यर्थियों के लिए झारखंड के ही किसी शैक्षणिक संस्थान से ही मैट्रिक या इंटर की परीक्षा पास करने की अनिवार्य शर्त नहीं है। इसके अलावा 15 क्षेत्रीय भाषा की सूची में हिंदी और अंग्रेजी भी शामिल हंै। 2021 में हेमंत सोरेन की सरकार ने 2021 में पूर्व की नियमावली को संशोधित करते हुए इन दो महत्वपूर्ण शर्तों को जोड़ा था। साथ ही, 13 अनुसूचित जिलों की रिक्ति में 11 गैर अनुसूचित जिलों के उम्मीदवार आवेदन नहीं कर सकेंगे, यह प्रावधान भी नहीं था।

यहां के लोगों के लिए हितकारी नियोजन नीति लाने के उद्देश्य ने सरकार ने कदम बढ़ाया था, जिसे वापस कर दिया गया। शिक्षक, पुलिस, कर्मचारी के बहुत पद खाली हैं, ऐसे में राज्य में राज्य के युवाओं के मत को जानने की आवश्यकता महसूस की गई। जिससे समय से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जा सके।

नियोजन नीति रद्द कर दिया था

हेमंत सरकार ने वर्ष 2021 की नियोजन नीति में थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नियुक्ति में आदिवासी और मूलवासियों को लाभ देने के लिए स्थानीय भाषाओं व संस्कृति की जानकारी को जोड़ा था। राज्य के संस्थान से 10वीं और 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण होने की अनिवार्य शर्त थी। इसे अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने इन शर्तों को गलत ठहराते हुए नियोजन नीति रद्द कर दिया था।

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