झारखंड हाइकोर्ट ने झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली 2021 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकार करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने इस नियमावली को खारिज कर दिया। इस आदेश के साथ ही सभी नियुक्तियां रद्द हो गयीं। संशोधित नियमावली के तहत जारी नियुक्ति के सभी विज्ञापन को भी निरस्त कर दिया। चीफ जस्टिस डॉ रविरंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने जेएसएससी (JSSC) की नियमावली को असंवैधानिक करार दिया। इस नियमावली को आर्टिकल 14 के प्रावधानों का उल्लंघन बताया।
नियमावली को आर्टिकल 14 के प्रावधानों का उल्लंघन
नियमावली को आर्टिकल 14 के प्रावधानों का उल्लंघन बताया गया है। नियमावली की कंडिका 7 के तहत कहा गया है कि झारखंड के शिक्षण संस्थान से मैट्रिक व इंटर पास करने वाले आवेदन कर सकेंगे, जबकि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए ये प्रावधान शिथिल रहेगा। कंडिका 9 में हिंदी व अंग्रेजी को भाषा की सूची से बाहर कर दिया गया था। इस नियमावली से हो रही नियुक्ति रद्द रहेगी।
लंबी सुनवाई के बाद फैसला था सुरक्षित
7 सितंबर को चीफ जस्टिस डॉ रविरंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने लंबी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत में प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, अपराजिता भारद्वाज, कुमार हर्ष, कुशल कुमार एवं राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, वरीय अधिवक्ता सुनील कुमार, महाधिवक्ता राजीव रंजन व पीएस चित्रेश ने पैरवी की।
क्षेत्रीय भाषा के आधार पर किया गया था संशोधन
एसएससी की संशोधित नियमावली के खिलाफ रमेश हांसदा सहित अन्य की ओर से हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। इस दौरान सरकार की ओर से वरीय अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सुनील कुमार ने पक्ष रखते हुए कहा था कि जेएसएससी (JSSC) नियुक्ति नियमावली में संशोधन क्षेत्रीय भाषा के आधार पर किया गया है ताकि यहां के रीति-रिवाज और संस्कृति के बारे में जानकारी हो सके। राज्य सरकार को नियुक्ति के लिए ऐसी नीति बनाने का अधिकार है। ऐसे में प्रार्थी अथवा अन्य की आपत्ति पर अदालत फैसला नहीं ले सकती है।
राज्य के बाहर से बोर्ड की परीक्षा पास करने वालों के साथ भेदभाव
इस याचिका के आधार पर सरकार के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। जबकि प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, अपराजिता भारद्वाज और कुशल कुमार का कहना था कि राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति के लिए 10वीं और 12वीं की परीक्षा राज्य के संस्थान से पास करने की शर्त लगाना पूरी तरह से असंवैधानिक है क्योंकि राज्य के कई मूलवासी ऐसे हैं, जो राज्य के बाहर रहते हैं। उनके बच्चों ने राज्य के बाहर से 10वीं और 12वीं की परीक्षा पास की है। ऐसे में मूलवासी होने के बाद भी उन्हें चयन प्रक्रिया से बाहर करना गलत है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है, जो किसी प्रकार के भेदभाव की अवधारणा नहीं रखता है।
पेपर से हिंदी और अंग्रेजी को गायब करना गलत
यह भी कहा गया कि भाषा के पेपर में क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल करने से उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। राज्य के अधिसंख्य लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिंदी और अंग्रेजी को भाषा (पेपर दो) से बाहर कर देना पूरी तरह से गलत है। इसको लागू करने से पहले सरकार की ओर से कोई स्टडी नहीं की गई है और न ही इसका कोई ठोस आधार है। इस तरह की असंवैधानिक शर्त के आधार पर राज्य में नियुक्ति नहीं की जा सकती है। राज्य में 61.25 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते है। इसलिए विवादित नियुक्ति नियमावली को निरस्त कर देना चाहिए।
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