Muslim Reservation in West Bengal: कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा मार्च 2010 से मई 2012 के बीच मुस्लिम आरक्षण के लिए पारित सभी आदेश रद्द कर दिये हैं। यह फैसला लोकसभा चुनाव से पहले आया है, जब मुस्लिम आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने पाया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य सरकार ने आरक्षण देने के लिए धर्म को “एकमात्र” आधार बनाया, जो संविधान और अदालत के आदेशों के खिलाफ है।
आरक्षण का इतिहास: कब और कैसे मिला आरक्षण?
पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आरक्षण की शुरुआत 2010 में हुई जब लेफ्ट सरकार ने ओबीसी कोटा में 42 जातियों को चिन्हित किया। इनमें से 41 जातियाँ मुस्लिम समुदाय से थीं। 2011 में ममता बनर्जी की सरकार आई और 2012 में 35 और जातियों को ओबीसी कोटे में शामिल किया गया, जिनमें से 34 जातियाँ मुस्लिम समुदाय से थीं।
Muslim Reservation in West Bengal: लेफ्ट और TMC दोनों ने दिया रिजर्वेशन
5 मार्च 2010 से 24 सितंबर 2010 के बीच, पश्चिम बंगाल सरकार ने कई नोटिफिकेशन जारी किए, जिनमें 42 जातियों को ओबीसी कैटेगरी में शामिल किया गया। इनमें से 41 जातियाँ मुस्लिम समुदाय से थीं। इससे उन्हें संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत सरकारी नौकरियों में आरक्षण और प्रतिनिधित्व का अधिकार मिला। 24 सितंबर 2010 को ही राज्य सरकार ने एक और आदेश जारी किया, जिसके जरिये ओबीसी की 108 जातियों को ए और बी कैटेगरी में बांटा गया। 56 को ओबीसी-ए (अति पिछड़ा) और 52 को ओबीसी-बी (पिछड़ा) कैटेगरी में रखा गया।
ममता बनर्जी सरकार का कदम
Muslim Reservation in West Bengal: मई 2012 में ममता बनर्जी सरकार ने भी ऐसा ही नोटिफिकेशन जारी किया और 35 जातियों को ओबीसी में शामिल किया, जिनमें से 34 मुस्लिम थीं। इसके बाद मार्च 2013 में पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) आरक्षण अधिनियम, 2012 को अधिसूचित किया गया, जिसमें सभी 77 जातियों को ओबीसी अधिनियम की अनुसूची I में शामिल किया गया। इसके बाद विवाद की शुरुआत हुई और अधिनियम को चुनौती देने वाली दो याचिकाएं कोर्ट में दायर हुईं।
Muslim Reservation in West Bengal: मामला कोर्ट क्यों पहुंचा?
Muslim Reservation in West Bengal: 2011 में यह मामला पहली बार कोर्ट गया। याचिका में कहा गया कि 42 नई जातियों को ओबीसी में शामिल करने का फैसला पूरी तरह से धर्म आधारित है। कमीशन ने जो सर्वे किया वो न साइंटिफिक था और न ही किसी ठोस डाटा पर आधारित था। सब कुछ पहले से तय था।
Muslim Reservation in West Bengal: हाईकोर्ट का फैसला
हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई में ‘इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार’ केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाया। इस केस में 1992 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की पीठ ने माना था कि ओबीसी की पहचान केवल धर्म के आधार पर नहीं की जा सकती और उन्हें आरक्षण नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि सभी राज्यों को राज्य ओबीसी सूची में किसी जाति को शामिल करने और उनकी पहचान के लिए एक पिछड़ा वर्ग आयोग स्थापित करना चाहिए।
आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल
Muslim Reservation in West Bengal: पश्चिम बंगाल वाले केस में पिछड़ा वर्ग आयोग ने दलील दी कि उन्हें नागरिकों से एप्लीकेशन मिली थी। इसी आधार पर 77 जातियों की पहचान की गई और फिर सरकार को इन्हें ओबीसी कोटा में शामिल करने की सिफारिश की गई थी। हाईकोर्ट ने तमाम तथ्यों की जांच के बाद कहा कि साल 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मुस्लिमों के लिए आरक्षण की घोषणा की थी। इसके बाद कमीशन ने “बिजली की गति” से काम किया और जातियों के पिछड़ेपन को निर्धारित करने के लिए किसी मानदंड का पालन नहीं किया।
Muslim Reservation in West Bengal: सिर्फ धर्म ही इकलौता आधार
हाईकोर्ट ने कहा कि ”तथ्यों से पता लगता है कि सिर्फ और सिर्फ ‘धर्म’ इन समुदायों को ओबीसी कोटे में शामिल करने का एकमात्र क्राइटेरिया प्रतीत होता है। आयोग ने जो रिपोर्ट पेश की वो सिर्फ धर्म आधारित सिफारिशें छिपाने के लिए थी।” हाईकोर्ट ने आगे कहा- “अदालत इस बात से संदेह मुक्त नहीं है कि इन जातियों को राजनीतिक लाभ के लिए एक हथियार बनाया गया और जिन 77 जातियों को आरक्षण दिया गया, उन्हें “वोट बैंक” माना जा रहा है।”
आगे का रास्ता
Muslim Reservation in West Bengal: इस फैसले के बाद पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आरक्षण को लेकर विवाद और भी गहरा हो सकता है। सरकार को अब अपने निर्णय की पुनः समीक्षा करनी होगी और इस प्रक्रिया में धर्म के अलावा अन्य सामाजिक और आर्थिक मानदंडों को ध्यान में रखना होगा। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह मुद्दा और भी गरम हो सकता है, जिसमें मुस्लिम समुदाय की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है।
इस प्रकार, कलकत्ता हाईकोर्ट के इस फैसले ने पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आरक्षण की पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़ा कर दिया है और इसे संविधान के अनुकूल बनाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
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