adivasi dharam: आदिवासियों के लिए हो अलग धर्म कॉलम
adivasi dharam को लेकर आदिवासी समुदाय में लंबे समय से मांग चल रही है कि प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए अलग धर्म कॉलम (सरना कोड) दिया जाए। इस मांग को लेकर 28 फरवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक दिवसीय धरना का आयोजन किया गया है।
राष्ट्रीय आदिवासी समन्वय समिति भारत के समन्वयक देवकुमार धान ने बताया कि आज़ादी के 75 वर्षों के बाद भी आदिवासियों को संवैधानिक मौलिक अधिकार पूरी तरह नहीं मिले हैं। उन्होंने कहा, “हम अपनी धार्मिक आज़ादी की आवाज़ को आगे बढ़ाएंगे और इस आंदोलन को देशव्यापी रूप देंगे।”
आदिवासियों के अस्तित्व और पहचान के लिए अलग धर्म कॉलम क्यों जरूरी है?
adivasi dharam के लिए अलग धर्म कॉलम की मांग आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी को बचाने के लिए की जा रही है। देवकुमार धान ने कहा कि बिना अलग धर्म कॉलम के आदिवासी समाज के लोग धीरे-धीरे हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई धर्मों में शामिल हो रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव आदिवासी जनसंख्या पर पड़ रहा है।
आंकड़े और तथ्य
- 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 10.42 करोड़ आदिवासी हैं, जो देश की कुल आबादी का लगभग 8.6% हैं।
- बिना अलग धर्म कॉलम के आदिवासियों की वास्तविक जनसंख्या आंकड़ों में सही तरीके से प्रदर्शित नहीं होती है।
- 2011 की जनगणना में 50 लाख से अधिक लोगों ने “कोई धर्म नहीं” कॉलम चुना था, जिनमें से अधिकतर आदिवासी थे।
केंद्र सरकार से क्या है आदिवासियों की मांग?
आदिवासी समुदाय ने केंद्र सरकार से कई बार यह मांग की है कि adivasi dharam के लिए अलग से धर्म कॉलम प्रदान किया जाए।
प्रमुख मांगें
- अलग धर्म कॉलम: आदिवासियों को उनकी धार्मिक पहचान के लिए अलग कॉलम प्रदान किया जाए।
- संवैधानिक अधिकार: आदिवासी समाज को उनके मौलिक अधिकार दिए जाएं।
- सरना कोड लागू हो: आदिवासी धर्म “सरना” को मान्यता दी जाए।
- संरक्षण: उनकी भाषा, संस्कृति और परंपराओं को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
राष्ट्रीय आंदोलन बन चुका है adivasi dharam का मुद्दा
देवकुमार धान ने कहा कि आदिवासियों की धार्मिक स्वतंत्रता का आंदोलन अब एक राष्ट्रीय आंदोलन बन चुका है। यह आंदोलन सिर्फ एक मांग तक सीमित नहीं है बल्कि आदिवासियों के अधिकारों, संस्कृति और परंपराओं की रक्षा के लिए किया जा रहा है।
आंदोलन के उद्देश्य
- भाषा और संस्कृति की रक्षा: आदिवासी समाज की भाषा और संस्कृति को संरक्षित करना।
- जागरूकता फैलाना: युवा, बुद्धिजीवी और नौकरीपेशा आदिवासियों को इस आंदोलन से जोड़ना।
- संविधान में जगह: आदिवासियों की परंपराओं और धर्म को संविधान में जगह देना।
28 फरवरी का धरना क्यों महत्वपूर्ण है?
दिल्ली के जंतर-मंतर पर 28 फरवरी को होने वाला धरना adivasi dharam की मांग को लेकर महत्वपूर्ण है। यह प्रदर्शन इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में लाने का प्रयास करेगा।
धरने के मुख्य उद्देश्य
- केंद्र सरकार पर दबाव बनाना।
- आदिवासियों की मांगों को प्रभावी रूप से प्रस्तुत करना।
- देशभर से आदिवासी प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाना।
मैंने इस मुद्दे पर क्या महसूस किया?
जब मैंने इस आंदोलन और धरने के बारे में पढ़ा, तो मुझे महसूस हुआ कि आदिवासी समाज का यह संघर्ष उनकी पहचान और अधिकारों के लिए है। आदिवासियों की अपनी परंपराएं, संस्कृति और धर्म है, जिन्हें अलग से मान्यता मिलनी चाहिए।
निष्कर्ष
adivasi dharam के लिए अलग धर्म कॉलम की मांग आदिवासी समाज की पहचान और अधिकारों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। यह सिर्फ धार्मिक पहचान का मामला नहीं है, बल्कि यह उनके अस्तित्व, संस्कृति और भविष्य की रक्षा के लिए भी जरूरी है। केंद्र सरकार को इस पर ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि आदिवासी समाज को उनका हक मिल सके।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
प्रश्न 1: adivasi dharam के लिए अलग धर्म कॉलम क्यों जरूरी है?
उत्तर: अलग धर्म कॉलम से आदिवासी समाज की सही जनसंख्या का आकलन होगा और उनकी पहचान संरक्षित रहेगी।
प्रश्न 2: 28 फरवरी को जंतर-मंतर पर धरने का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: इस धरने का उद्देश्य केंद्र सरकार पर दबाव बनाना और आदिवासी समाज की मांगों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करना है।
प्रश्न 3: सरना कोड क्या है?
उत्तर: सरना कोड एक प्रस्तावित धर्म कॉलम है, जो आदिवासी समाज की धार्मिक मान्यताओं को मान्यता देने के लिए है।
प्रश्न 4: क्या केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर कोई कदम उठाया है?
उत्तर: अभी तक केंद्र सरकार ने इस मांग को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। हालांकि, आदिवासी समाज लगातार इस मुद्दे को उठाता आ रहा है।
“हमारी पहचान, हमारा अधिकार – यही है हमारी मांग।” adivasi dharam का यह मुद्दा आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक है।
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