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SBI Electoral Bond Case: पारदर्शिता बनाम गुमनामी

SBI Electoral Bond Case
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SBI Electoral Bond Case: भारतीय राजनीति में वित्त पोषण (financial contribution) का मुद्दा हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। इसी कड़ी में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का फैसला, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) और इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सुर्खियों में है। आइए, इस जटिल मामले को गहराई से समझते हैं।

इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है? (What is an Electoral Bond?)

SBI Electoral Bond Case

SBI Electoral Bond Case: इलेक्टोरल बॉन्ड भारत सरकार द्वारा 2017 में शुरू की गई एक योजना है। इस योजना के तहत कोई भी व्यक्ति या कंपनी किसी भी मूल्यवर्ग (denomination) में निर्धारित बैंकों (designated banks) से इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है। ये बॉन्ड बेअरर बॉन्ड (bearer bond) की तरह होते हैं, जिस पर खरीदार का नाम दर्ज नहीं होता है। बाद में इन बॉन्ड्स को किसी भी रजिस्टर्ड राजनीतिक दल को दान दिया जा सकता है। राजनीतिक दल इन बॉन्ड्स को निर्धारित बैंक शाखाओं में जमा कर सकते हैं, और राशि उनके खाते में जमा हो जाती है।

सरकार का दावा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना से राजनीतिक दलों को पारदर्शी (transparent) ढंग से चंदा मिल सकेगा और काले धन (black money) पर रोक लगेगी।

एसबीआई और इलेक्टोरल बॉन्ड विवाद (SBI and Electoral Bond Controversy)

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हालांकि, इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की शुरुआत से ही इसकी पारदर्शिता पर सवाल उठाए गए। आलोचकों का कहना था कि गुमनाम दान (anonymous donation) से राजनीतिक दलों को कौन फंडिंग कर रहा है, यह पता लगाना मुश्किल हो जाएगा। इससे भ्रष्टाचार (corruption) और अनुचित प्रभाव (undue influence) का खतरा बढ़ सकता है।

इस विवाद को लेकर याचिकाएं (petitions) दायर की गईं, जिन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Supreme Court’s Verdict)

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फरवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक (unconstitutional) करार दिया। कोर्ट ने माना कि गुमनाम दान से चुनावों में धन के स्रोत की जानकारी छिप जाती है, जो लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है।

निर्णय के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  • इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक घोषित किया गया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह आदेश दिया कि वह राजनीतिक दलों को दिए गए इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी 13 मार्च 2024 तक सार्वजनिक करे।
  • कोर्ट ने एसबीआई को निर्देश दिया कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी चुनाव आयोग को सौंपे।

फैसले के बाद की स्थिति (Situation After the Verdict)

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में हलचल मची हुई है। कई राजनीतिक दल इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं, जबकि कुछ दल सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना को रद्द करने के फैसले का विरोध कर रहे हैं।

एसबीआई ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने में कुछ देरी करने की कोशिश की, लेकिन कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए उसे निर्धारित समय सीमा के अंदर चुनाव आयोग को सारी जानकारी सौंपने का आदेश दिया।

भविष्य के लिए संभावनाएं (Future Possibilities)

SBI Electoral Bond Case: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। यह फैसला राजनीतिक दलों के वित्त पोषण में पारदर्शिता लाने

22,217 चुनावी बोंडों का खरीदारी, 22,030 को राजनीतिक दलों द्वारा रिडीम किया गया: एसबीआई ने एससी को बताया

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कुल 22,217 चुनावी बोंड खरीदे गए थे और उनमें से 22,030 को राजनीतिक दलों द्वारा रिडीम किया गया था।

SBI Electoral Bond Case: एसबीआई चेयरमैन की एफिडेविट

एसबीआई के चेयरमैन ने शीर्ष अदालत में एक एफिडेविट दाखिल किया, जिसमें बताया गया कि “इसके आदेश के अनुपालन में, प्रत्येक चुनावी बोंड की खरीद की तारीख, खरीददार का नाम और खरीदी गई चुनावी बोंड का मूल्य भारतीय चुनाव आयोग को प्रदान किया गया है।”

SBI Electoral Bond Case: अवैध बोंडों का विवरण

सरकारी बैंक ने अवैध बोंडों के एनकैशमेंट, राजनीतिक दलों को योगदान प्राप्त करने वाले बोंडों का नाम और मूल्य के बारे में विवरण भी प्रदान किया।

डेटा आपूर्ति

SBI Electoral Bond Case: एसबीआई द्वारा प्रदान किए गए बोंडों के डेटा की तारीख 12 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 है।

SBI Electoral Bond Case: अंतिम तिथि की पूर्ति

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने बैंक की याचिका को खारिज किया और राजनीतिक दलों द्वारा प्रत्येक चुनावी बोंड के विवरण खुलासा करने के लिए 12 मार्च के व्यापक व्यापक कार्यकाल की अनुमति दी।

डेटा प्रस्तुति

SBI Electoral Bond Case: प्राप्त डेटा को 15 मार्च, 2024 को चुनाव आयोग की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाएगा।

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