नहाय-खाय से आरम्भ हुआ लोक आस्था, पवित्रता व सूर्य उपासना का Mahaparv Chhath :
नहाय खाय पर व्रती नहा धोकर कर आज के दिन चने कि दाल, कद्दू की सब्जी और चावल का प्रसाद ग्रहण करते हैं. ये सारा खाना सेंधानमक में बनता है और इस खाने के बाद से व्रत का प्रारंभ होता है.

बता दें कि नहाय-खाय का मतलब होता है स्नान करके भोजन करना. छठ के नहाय खाय में व्रती नदियों और तालाब में स्नान करने के बाद अपने हाथों से अरबा चावल यानी कच्चा चावल का भात बनाते हैं और फिर कद्दू जिसे लौकी और घीया भी कहा जाता है उसकी सब्जी बनाते हैं. कुछ जगहों पर सरसों का साग भी बनता है. इसे भोजन रूप में मात्र एक बार ग्रहण किया जाता है.

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अगले दिन खरना को नमक का त्याग करके सिर्फ मीठा भोजन किया जाता है. इसमें गुड़ की खीर और पूड़ी खाई जाती है. इसके बाद तीसरे दिन निर्जला व्रत शुरू हो जाता है. सबसे पहले डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है फिर उगते सूर्य को. चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ का पर्व पूर्ण होता है.

पीले और लाल रंग के कपड़ों को पहनने का रिवाज
नहाय खाय पर व्रतीजन नए वस्त्र धारण करते हैं, महिलाएं पीले और लाल रंग के कपड़ों को पहनती हैं और नाक से लेकर पूरी सिर तक मांग भरती हैं. सोलहर श्रृंगार कर के इस दिन छठी मईया की पूजा और प्रसाद बनाया जाता है.
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घर में बनता है सात्विक खाना
जिस घर में छठ की पूजा होती है उस घर में जो व्रत नहीं रहते, उन्हें भी चार दिन तक सात्विक भोजन ही करना होता है.

गीत गाते हुए बनता है प्रसाद खाना पकाने के दौरान भी छठव्रती छठी मईया की गीतों महिलाएं गाती रहती हैं. वहीं नदी-तालाब पर भी जाते समय मंगल गीत गाते हुए ही जाया जाया जाता है.
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लकड़ी के चूल्हे पर बनता है खाना नहाय खाय से व्रत का खाना लकड़ी के चूल्हे पर बनता है. इस चूल्हे में केवल आम की लकड़ी का ही इस्तेमाल किया जाता है. इस दिन तमाम नियमों का पालन करते हुए भोजन बनाकर सबसे पहले सूर्य देव को भोग लगाया जाता है. उसके बाद छठ व्रती भोजन ग्रहण करते हैं और उसके बाद ही परिवार के दूसरे सदस्य भोजन कर सकते हैं.

जमीन पर होता है सोना छठ का समापन होने तक व्रती को जमीन पर ही सोना होता है. व्रती जमीन पर चटाई या चादर बिछाकर सो सकते हैं. छठ मईया के कमरे में हर कोई नहीं जा सकता है.